सारनाथ बौद्ध धर्मावलम्बियों का तीर्थस्थल
संक्षिप्त विवरण
भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में वाराणसी जिला मुख्यालय से मात्र ८ किलोमीटर की दूरी पर सारनाथ स्थित है | सारनाथ आने-जाने के सभी संसाधन मौजूद है, चाहे रोड हो, रेल हो या हवाई मार्ग | सारनाथ में भी रेलवे स्टेशन है परन्तु अधिकतम बड़ी गाड़ियाँ वाराणसी कैंट से ही आती जाती है |
सारनाथ बौद्ध धर्मावलम्बियों के लिए तीर्थस्थल है | भगवान बुद्ध यहाँ ज्ञान प्राप्ति के तदुपरांत सर्व प्रथम यही पर अपना पहला उपदेश दिया था | बौद्ध ग्रंथो में इस स्थल का कई अन्य नामों का विवरण मिलता है जैसे इस्सिपत्तन, मृगदाय, मृगदाव आदि
यहाँ भगवान बुद्ध का पहला उपदेश, प्रथम संघ-निर्माण, प्रथम वर्षावास, भगवान बुद्ध के सुमधुर वचन जिसे दुनिया ने सबसे पहले सुना | यहाँ ५०० प्रत्येक-बुद्ध के अवशेष निर्वाण प्राप्ति के बाद मिलता है जिससे इसे ऋषिपत्तन (अप्भ्रंश इसिपत्तन) नाम का उल्लेख मिलता है | यहाँ हिरनों के झुंडों का निर्बाध विचरण करने से इस स्थान का नाम मृगदाव हुआ, बोधिसत्व न्याग्रोधमृग के स्व अर्पण से प्रसन्नचित होकर राजा बनारस का यहाँ प्रश्रय प्राप्त था |
मध्ययुगीन शिलालेखों में यह स्थान धर्मचक्र या सद्धर्मचक्र-परिवर्तन-विहार के रूप में उल्लेख मिलता है | आज आधुनिक समय में सारंगनाथ (हिरनों के देव) जो शिव का नाम और स्थान भी यहाँ है का प्रवर्तित रूप सारनाथ है|
सारनाथ बौद्धों के समान ही जैनियों का भी तीर्थस्थान है | यहीं पास में जैनियों के ११ वें तीर्थंकर श्रेयांशनाथ का जन्म सिंहपुर नामक स्थान पर हुआ था |
ज्ञान प्राप्ति के तत्पश्चात भगवान बुद्ध ने यह निर्णय लिया की वे अपने धर्मोपदेश सर्वप्रथम उन पांच अपने सहयोगियों को देंगें जो वर्षो उनके साथ थे और सारनाथ चले आये थे. इसी हेतु वे वाराणसी के लिए प्रस्थान किये और सर्वप्रथम उन पांच योगिओं को उपदेशित किया, इस घटनाक्रम को बौद्ध ग्रंथों में “धर्मचक्र – प्रवर्तन” के नाम से जाना जाता है |
कुषाण समय के एक लेख में इस उपदेश से सम्बंधित विवरण मिलता है | बुद्ध ने “आर्य-सत्य-चतुस्टय” यानि चार आर्य सत्य का उद्बोधन किया :-
- दुःख है
- दुःख के कारण है
- दुःख को शमित करने के उपाय है
- अष्टांगिक-मार्ग से दुःख का शमन संभव है
यह प्रक्रिया व्यक्ति को निर्वाण की स्थिति में लाता होता है, जो वह अज्ञानता से बौद्धिक होने की और बढ़ता है | आज पूरा विश्व बुद्ध के बताये मार्ग पर चल कर शांति का आह्वान करना चाहता जिसका प्रथम लौ यही सारनाथ में प्रज्वल्लित हुआ था | इसी कारण सारनाथ बौद्ध धर्मावलम्बियों का प्रमुख तीर्थस्थल है|
अष्टांगिक-मार्ग सम्मा-वाचा, सम्मा-आजीव, सम्मा-वयम, सम्मा-सती, सम्मा-समाधी, सम्मा-संकल्प, सम्मा-दिट्ठी / दृष्टि हैं |
भगवान बुद्ध ने अपने शिष्य से कहा की जीवन जीने के दो तरीके है एक सभी प्रकार के भौतिक संसाधनों के भोग और आनंद करते हुए जो दुःख का कारण बनता है और दूसरा शारीरिक दुखों को सहते हुए भौतिक संसाधनों के आननद का परित्याग कर| यह दोनों ही मार्ग अतिवादी है | एक माध्यम मार्ग जो बौद्धिकता पर आधारित हो जिवन को उद्देश्यपूर्ण बना दे |
यह प्रथम उपदेश जीवन के मुलभूत समस्याओं पर बहुत ही सीधा एवं सधा हुआ उपयोगी आध्यात्मिक व्यक्तव्य है, जिसे सम्पूर्ण विश्व बहुत ही आदर से देखता है जो पुरे बुद्धिम का सार तत्व है | इसी कारण सारनाथ विश्व को आलोकित करने वाला धुरी बन गया है |
सारनाथ में ही भगवान बुद्ध ने सर्वप्रथम संघ निर्माण की नीव डाली | बनारस के एक धनिक परिवार का लड़का यश बुद्ध के वचन से प्रभावित होकर उनका शिष्य बना तथा पञ्च वर्गीय योगी जो उनके साथ से भी उनके शिष्य बने | तदुपरांत ६० लोगों का एक संध बनाकर भगवान बुद्ध ने धर्म प्रचार के लिए सभी दिशाओं में भेज दिया |
बुद्ध के परिनिर्वाण के २०० वर्षों के पश्चात् महान सम्राट अशोक यहाँ आये, जो अपने कलिंग युद्ध से विरक्ति के बाद बौद्ध धर्म अपना लिया था; अपने जीवन को बौद्ध धर्म के प्रचार में लगा दिया | वह भगवान् बुद्ध से सम्बंधित सभी जगहों पर गए और शिलालेखों का निर्माण कराया |